मुझमें क्या आकर्षण
मुझमें क्या आकर्षण जो तुम अपनी
गली
छोड़कर आओ
मेरे पास नहीं अपना घर
फिरता रहता हूँ आवारा
और एक तुम हो कि गाँव में
सब से ऊँचा महल तुम्हारा
कैसे दूँ आदेश उमर को, उनसे ज़रा
होड़कर आओ
लिखा नहीं पाया किस्मत में
तुम जैसी सम्पन्न जवानी
तुमने तृप्ति गुलाम बना ली
मेरी प्यास माँगती पानी
तुम्हें ज़रूरत नहीं कि, जो तुम अपने नियम
तोड़कर आओ
भार मुझे ही अपना जीवन
तुम ही ठेकेदार चमन के
तुमने साख भुनाली अपना
जुड़े न मुझसे दाम कफ़न के
मंदिर में अब ऐसा क्या है जो तुम हाथ
जोड़कर आओ
१७ अगस्त २००९ |