अनुभूति में
भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाएँ
गौरव ग्राम में-
इसे जगाओ
गीत फरोश
चार कौवे उर्फ़ चार हौवे
जाहिल मेरे बाने
दरिंदा
महारथी
मैं
क्यों लिखता हूँ
स्नेह पथ
सतपुड़ा के जंगल
सुबह
हो गई है
अंजुमन में-
हँसी आ रही है
संकलन में-
वर्षा मंगल -
बूँद टपकी नभ से
गुच्छे भर अमलतास -
मैं
क्या करूँगा |
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जाहिल मेरे बाने
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले
नंगे पाँवों चलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँ
आप सभ्य है क्योंकि हवा में उड़
जाते हैं ऊपर
आप सभ्य है क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर
आप सभ्य है क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी
आप सभ्य है क्योंकि जोर से पढ़ पाते हैं पोथी
आप सभ्य है क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं
आप सभ्य है क्योंकि जबड़े खून सने हैं
आप बड़े चिंतित है मेरे
पिछड़ेपन के मारे
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता ज़ाहिल
अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाये हूँ याने! |