अनुभूति में भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाएँ
गौरव ग्राम में- इसे जगाओ गीत फरोश चार कौवे उर्फ़ चार हौवे जाहिल मेरे बाने दरिंदा महारथी मैं क्यों लिखता हूँ स्नेह पथ सतपुड़ा के जंगल सुबह हो गई है अंजुमन में- हँसी आ रही है
संकलन में- वर्षा मंगल - बूँद टपकी नभ से गुच्छे भर अमलतास - मैं क्या करूँगा
दरिंदा आदमी की आवाज़ में बोला
स्वागत में मैंने अपना दरवाज़ा खोला
और दरवाज़ा खोलते ही समझा कि देर हो गई!
मानवता थोड़ी बहुत जितनी भी थी ढेर हो गई!
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