अनुभूति में
भवानी प्रसाद मिश्र की रचनाएँ
गौरव ग्राम में-
इसे जगाओ
गीत फरोश
चार कौवे उर्फ़ चार हौवे
जाहिल मेरे बाने
दरिंदा
महारथी
मैं
क्यों लिखता हूँ
स्नेह पथ
सतपुड़ा के जंगल
सुबह
हो गई है
अंजुमन में-
हँसी आ रही है
संकलन में-
वर्षा मंगल -
बूँद टपकी नभ से
गुच्छे भर अमलतास -
मैं
क्या करूँगा |
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इसे जगाओ
भई, सूरज
जरा इस आदमी को जगाओ
भई, पवन
ज़रा इस आदमी को हिलाओ,
यह आदमी जो सोया पड़ा है,
जो सच से बेखबर
सपनों में खोया पड़ा है।
भई पंछी,
इसके कानों पर चिल्लाओ!
भई सूरज! जरा इस आदमी को जगाओ!
वक्त पर जगाओ
नहीं तो जब बेवक्त जागेगा यह
तो जो आगे निकल गए हैं
उन्हें पाने
घबरा के भागेगा यह!
घबरा के भागना अलग है
क्षिप्र गति अलग है
क्षिप्र तो वह है
जो सही क्षण में सजग है
सूरज, इसे जगाओ,
पवन, इसे हिलाओ,
पंछी इसके कानों पर चिल्लाओ!
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