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अनुभूति में सरदार कल्याण सिंह
के दोहे -

नए दोहे—
गणपति बप्पा मोरया (दोहे)

दोहों में--
ग्रीष्म पचीसी
चुनावी चालीसा
दोहे हैं कल्याण के
नीति के दोहे
मज़दूर
मूर्ख दिवस

संकलन में—
ममतामयी—माँ के नाम

 

गणपति बप्पा मोरया

सब से भोले देव जो, गंगा जिनके केश।
सबसे पहले पूज्य हैं, उन के पुत्र गणेश।।

महादेव से लड़ गये, माँ की आज्ञा मान।
रूप गजानन मिला तब, शिवजी से वरदान।।

श्री गणेश ने दिया जब, मात पिता को मान।
प्रथम पूज्य वह हो गये, पा कर के वरदान।।

कहें गजानन भक्त कुछ, कहते कई गणेश।
उन की माता पार्वती, उनके पिता महेश।।

लक्ष्मी बिना गणेश के, होय न खुश कल्यान।
पूजो गणपति को अगर, देती वह वरदान।।

मूषक ऊपर वह सजे, करते लडडू भोग।
गणपति बप्पा मोरया, जय जय करते लोग।।

कह श्री गणेशाय नम:, करें शुरू हर वर्ष।
कृपा लक्ष्मी जी करें, घर में फैले हर्ष।।

सुनते हैं देखी नहीं, गणपति उत्सव रीत।
गणपति बप्पा मोरया, लगता अपना गीत।।

उत्सव मनते देश में, निकलें कई जलूस।
बप्पा गणपति दें खूशी, करते हम महसूस।।

एक दन्त से मार कर, अमर दैत्य कल्यार।
मूषक उसे बना दिया, गणपति देव महान।।

शिवजी की है सर्जरी, है प्रत्यक्ष प्रमाण।
बोलों कैसे मान लें, पिछड़ा हिन्दुस्तान।।

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