चुनावी चालीसा
जनता सपने देखती, बदल-बदल कर ताज।
कभी सदी इक्कीसवीं, कभी राम का राज।।1।।
वोट दिया या भीख दी, गया हाथ से तीर।
किस को हैं पहिचानते, नेता, पीर, फकीर।।2।।
गीदड़ बहुमत ढूँढ़ते, रहे अकेला शेर।
गीदड़ रहते डरे से, होता शेर दिलेर।।3।।
नेता जी की बात पर, कैसे करें यकीन।
जब से ऊँचे वह उड़े, देखी नहीं ज़मीन।।4।।
छोटी-छोटी पार्टियाँ, मिली बड़ी के साथ।
भोली भाली मछलियाँ, चढ़ीं मगर के हाथ।।5।।
चींटी काटी खाल में, कई जगह कल्यान।
उसने काटा कब किधर, गेंडा था अंजान।।6।।
चढ़ता सूरज देख के, रहे नमन की होड़।
ढलते सूरज से सभी, लेते नाता तोड़।।7।।
कैसा यह जनतंत्र है, वोट सभी का एक।
अंधी नगरी में कहीं, चलता नहीं विवेक।।8।।
हम हारे वह पूछते, लाओ कहाँ हिसाब।
अगर नोट हम खर्चते, जाते जीत जनाब।।9।।
जनता ने तो चुनी थी, सोच समझ सरकार।
दल बदलू ने बदल दी, जनमत दिया नकार।।10।।
किसे फ़िक्र है वतन की, बनते सभी नवाब।
रोटी चुपड़ी चाहिए, मिलता रहे कबाब।।11।।
गीदड़ कहता शेर से, नया ज़माना देख।
एक वोट तेरा पड़ा, मेरा भी है एक।।12।।
घोटालों की बात सुन, धरें नेता मौन।
नंगे सभी हमाम में, निकले बाहर कौन।।13।।
घर हमारे आए वह, हँसे मिलाया हाथ।
खुश होते हम अगर वह, गरज न लाते साथ।।14।।
हम चुनाव थे लड़ पड़े, देख जान पहचान।
कितना महँगा वोट है, जान गए कल्यान।।१15।।
सपन स्वर्ग के बेचिये, चलती खूब दुकान।
सीधे साधे लोग हैं, ले लेते कल्यान।।16।।
सन सिक्के से वोट दे, लिया खेल आनंद।
वोटर हमें बता गया, क्या है उसे पसंद।।17।।
सोच समझ कर कीजिए, नेता जी तक़रीर।
हुए सभी आज़ाद हम, हुए न सभी अमीर।।18।।
शक्ति रूप श्री राम थे, मार दिया लंकेश।
जनमत धोबी में रहा, हार गए अवधेश।।19।।
वोट गिनो यह ग़लत है, वोट तौलना ठीक।
मगर तुलैया मिले यदि, बुद्धिमान निर्भीक।।20।।
मत पूछो जनतंत्र में, बनता कहाँ विधान।
होता है दंगल कहाँ, पूछो यह कल्यान।।21।।
मिली जुली सरकार है, करती खींचातान।
बंदर मगर की दोस्ती, कितने दिन कल्यान।।22।।
माचिस सम जनतंत्र है, कर दे पैदा आग।
चाहे चूल्हा फूँक लो, चाहे फूँको पाग।।23।।
माँगा उनसे वोट जो, दीखी उनको हार।
कहते अपने वोट को, कौन करे बेकार।।24।।
भारत के जनतंत्र में, खाती जनता चोट।
धनपति करते राज हैं, जनमत की ले ओट।।25।।
बेचें कथा अतीत की, सपनों के वरदान।
वर्तमान में देखते, खुद को वह कल्यान।।26।।
बहुमत के प्रतिनिधि बनो, क्या है फिर इन्साफ़।
किए जुर्म संगीन भी, हो जाते सब माफ़।।27।।
पद लोलुप नेता हुए, बेच रहे ईमान।
कर के जनता वोट का खुले आम अपमान।।28।।
पास हमारे वोट थे, बदले हम सरकार।
हम जहाँ के तहाँ रहे, होते रहे ख़वार।।29।।
नेता हैं जो आज के, हैं कच्चे उस्ताद।
तीखे नारे दे रहे, भूल गूँज अनुनाद।।30।।
नारी सीमित घरों तक, लोक सभा से दूर।
आधा भाग समाज का, क्यों इतना मजबूर।।31।।
ढ़ोल पीट वह कर रहे, खुले आम एलान।
उनके नाम रिज़र्व है, भारत का कल्यान।।32।।
जनता की हर माँग को, कर दें नेता गोल।
अपनी नब्ज़ टटोल कर, करते रहे मखौल।।33।।
जिनको अपना समझते, वह रहते थे मौन।
हमें चुनाव बता गया, इन में अपना कौन।।34।।
जाती उम्रें बीत थीं, करते पालिश बूट।
अब चुनाव में जीत के, जाते बंदी छूट।।35।।
जनमत के प्रति राम का, देख लिया अनुराग।
इक धोबी की बात पर, दिया सिया को त्याग।।36।।
गांधी नेता बन गए, कर के पर उपकार।
कहो बात कल्यान की, मानेगा संसार।।37।।
हर दल वोटर से कहे, बीती ताहि बिसार।
फिर से अवसर दे मुझे ला दूँ तुझे बहार।।38।।
आज गए थे बूथ पर, दी वोटर ने चोट।
नैतिकता की बात की, डाले जाली वोट।।39।।
हर दल को अच्छे लगें, अपने गीत बहार।
कोई कब तक सुनेगा, जनता की मल्हार।।40।।
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