दोहे हैं कल्याण के
दावत हमने करी थी, नाचे घंटे चार।
गई कमायी साल की, शिकवे सुने हज़ार।
आज गए थे बूथ पर, दी वोटर ने चोट।
नैतिकता की बात की, डाले जाली वोट।
आज़ादी ने किया है, कैसा यह कल्यान।
रोटी कपड़ा घर दिया, छीन लिया ईमान।
इतनी पैनी कीजिए, नहीं कलम की धार।
टूटे जिस से मित्रता, दिल में पड़े दरार।
रिश्वत लेना जुर्म है, तब ही तो कल्याण।
ले लेना आसान है, मिले न कहीं प्रमाण।
ओझा जी ने सच कहा, आएगा भूचाल।
आ तो जाता वो मगर, दिया पूज के टाल।
कहते माँ जिस देश को, उसके तोड़ें अंग।
होते भारत देश में, कितने अद्भुत व्यंग।
किसे बताऊँ किसलिए, होती सर में खाज।
मेरी बिल्ली कह गई, मुझसे म्याऊँ आज।
कहीं सिफ़ारिश चलेगी, कहीं चलेगी घूस।
होंगे यों ही काम सब, होते क्यों मायूस।
खाना दे कर थाल में, खींच लिया फिर थाल।
माँगा था ना भूख थी, फिर भी लगा मलाल।
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