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अनुभूति में देवेश दीक्षित देव की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अच्छी नहीं होती
क्या समझा मुझे
जिसे अपना समझते थे
बाद तुम्हारे
बाहर मीठे होते हैं

दोहों में-
नागफनी से आचरण

 

क्या समझा मुझे

इससे बढ़कर आपने बस और क्या समझा मुझे
अपनी मंज़िल का महज़ इक रास्ता समझा मुझे

छोड़कर इक दिन परिंदे आसमाँ में उड़ गये
पंख आते ही सभी ने घोंसला समझा मुझे

अब हिक़ारत से वही पत्थर मुझे कहने लगा
कल तलक जिसने यक़ीनन देवता समझा मुझे

बढ़ गये मंज़िल की ज़ानिब सब मुसाफ़िर छोड़कर
हर किसी ने एक पत्थर मील का समझा मुझे

आज कंधे झुक गए तो बोझ हूँ उनके लिए
जिन कभी बेटों ने अपना हौसला समझा मुझे

दूर ऐसे हो कि अपने दरमियाँ कुछ भी न था
आपने क्यों ख़्वाब कोई नींद का समझा मुझे

रोशनी दरकार थी जब, मैं शम्अ' बनकर जला
सुब्ह होते आपने बेकार का समझा मुझे

१ फरवरी २०२४

 

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