अनुभूति में
देवेश दीक्षित देव की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छी नहीं होती
क्या समझा मुझे
जिसे अपना समझते थे
बाद तुम्हारे
बाहर मीठे होते हैं
दोहों में-
नागफनी से आचरण
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नागफनी से
आचरण
नागफ़नी-से आचरण, कीकर-से
जज़्बात।
भाषण में वो कर रहे, आदर्शो की बात।।
श्रद्धा, निष्ठा,
सत्य को, मिला न कोई ठौर।
झूठ कपट इस दौर में, बने रहे सिरमौर।।
जन्मजात जिनके रहे, दूषित सोच-विचार।
आज वहीं सिखला रहे, हमको शिष्टाचार।।
चोरी, झगड़े,
हादसे, ठगी लूट पर व्यभिचार।
क्या-क्या लेकर आ गया, सुबह एक अख़बार।।
मेरी ही कमियाँ सदा, केवल तू मत आँक।
ख़ुद भी अपने आपका, कभी गिरेबाँ झाँक।।
दरबारों का आजकल, यों बदला परिवेश।
काकवंश देने लगे, हंसों को उपदेश।।
कुछ दिन भी जिनके रहे, फूलों से संबंध।
उनके हाथों से सदा, आती रही सुगंध।।
तुमने पढ़ कर ही नहीं, देखा कभी जनाब।
अपना तो दिल यों रहा, जैसे खुली किताब।।
कविताओं से इस तरह, अपना रहा प्रसंग।
पढ़ते-पढ़ते आ गया, लिखने का कुछ ढंग।।
रोक न पाए स्वयं को, सुन शबरी की टेर।
बड़े चाव से खा गए, राघव झूठे बेर।।
नहीं किया होता अगर, बन-बन में संग्राम।
राम न बनते राम से, पुरुषोत्तम श्रीराम।।
धीरे-धीरे प्यार के, पाठ रहे सब भूल।
जहाँ-तहाँ जबसे खुले, नफ़रत के स्कूल।।
१ मई २०२२
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