अनुभूति में
देवेश दीक्षित देव की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अच्छी नहीं होती
क्या समझा मुझे
जिसे अपना समझते थे
बाद तुम्हारे
बाहर मीठे होते हैं
दोहों में-
नागफनी से आचरण
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जिसे अपना
समझते थे
जिसे अपना समझते थे, वही अपना नहीं निकला
यही दिल से हमारे उम्र-भर काँटा नहीं निकला
बहुत नज़दीक से खुदगर्ज़ दुनिया देख ली हमने
जिसे जैसा समझते थे, वही बैसा नहीं निकला
वो धोखा था नज़र का हम जिसे सोना समझते थे,
परखने पे वो सोना क्या, खरा काँसा नहीं निकला
ज़ुबानें सख़्त हैं जिनकी, वो दिल के साफ़ होते हैं
कोई भी शख़्स मीठा आज तक अच्छा नहीं निकला
सियासत की हवेली स्याह काजल की है अंदर से
कोई दामन यहाँ से आज तक उजला नहीं निकला
१ फरवरी २०२४
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