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अनुभूति में देवेश दीक्षित देव की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अच्छी नहीं होती
क्या समझा मुझे
जिसे अपना समझते थे
बाद तुम्हारे
बाहर मीठे होते हैं

दोहों में-
नागफनी से आचरण

 

बाहर मीठे होते हैं

अंदर बिल्कुल कड़ुवे लेकिन बाहर मीठे होते हैं
ऊँचे क़द के लोग यहाँ पर अक्सर नीचे होते हैं

बेशक सेहत को घातक हों कोई फ़र्क नहीं पड़ता
बाज़ारों में वो ही बिकते फल जो मीठे होते हैं

धीरे-धीरे जाम पिला,ऐ साकी!ऐसी जल्दी क्यों
सबके अपने पीने के कुछ तौर-तरीक़े होते हैं

जिनके अंदर होता है कुछ,कोई शोर नहीं करते
लेकिन बजने वाले वर्तन अक्सर रीते होते हैं

काँटे जैसी फ़ितरत होती, सारे ऐसे लोगों की
मुँह के मीठे, चहरे से जो फूल सरीख़े होते हैं

१ फरवरी २०२४

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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