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अनुभूति में विनोद पासी हंसकमल की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
एक उम्र गुजर गई
भीड़ में अकेले
शहरों की चकाचौंध
समर्पण
सृजन

 

एक उम्र गुजर गई

एक उम्र गुज़र गयी है
संग रहते रहते।
फिर भी
समझ न सके न इक दूजे को।

तुम जानते हो मेरा
नजरिया
में भी जानता हूँ तुम्हारा दृष्टिकोण।
जानते हैं
हम दोनों ही कि
ठीक है हमारा हमसफ़र।

पर ज़िद है अपनी अपनी
कि
सरकते नहीं हैं
अपनी ज़मीन से
साथ रह कर
परेशानियाँ भी झेलते हैं
और
रह भी नहीं पाते एक दूसरे के बगैर।
कैसा अजब ये रिश्ता है, कैसा ये प्यार है। 

१० जून २०१३

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