भीड़ में अकेले
भीड़ में तो
सब अकेले होते हैं।
हम अपनों के बीच अकेले हैं।
जुड़े हैं कितनों से मालूम नहीं
पर हम से कब जुड़ा
कुछ याद नहीं।
हर रिश्ता जुड़ता है स्वार्थ से
कसता है बन्धनों में।
कहने को पूरी आज़ादी है
पर मन की उमंग से
जी भी न सके।
सारी उम्र कटी दूसरों को समझने में
क्या समझा है हमें कभी किसी ने?
आज इसी गुत्थी को सुलझाने में
हम हैरान परेशां बैठे हैं।
१० जून २०१३ |