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  नव वर्ष

शाम हो रही है सुरमयी
पक्षियों का कलरव हो रहा मुखर
लौट आने को अपने नीड़ में
शायद ये भी है, इंतज़ार में
नये दिवस के।

आने वाला है नव आलोक
आशाओं के दीप जल उठे हैं
स्वागत में सपनों की बारात के।
भूलकर निराशा का गलियारा
मन झूमे फूलों की क्यारी-सा।

मैं ये सोचूँ
पतझड़ में भी होगी
छायी सावन की बदरी।
इंद्रधनुषी आसमां होगा
खेतों में हर ओर छायी हरियाली होगी
पत्तों की बजती ताली होगी
उसमें चाँद सितारों का साथ होगा
सभी में नवजीवन का संचार होगा।
आने वाले वर्ष में
ऐसा बासंती बयार होगा।

२४ सितंबर २००६

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