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  गुनगुनी धूप

हिमशिखर पर खिली आज
गुनगुनी धूप है
लग रहा ऐसा
स्वर्णपरी का देश है

दस्तक सुन वसंत की
बर्फीले नजारों का
बदला स्वरूप है
गुनगुनी धूप है।

क्षितिज से आकर
रश्मियाँ मिटा रही अवसाद है
अंधेरे का पर्दा हटाकर
किरणो के रथ पर मुस्काती
गुनगुनी धूप है।

फूलों के रूख़सार पर
तितलियों को खींच लायी
रूप उर्वशी सा मधुर अनुक्षण
ऋचाओं की गंगोत्री
गुनगुनी धूप है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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