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  भागीरथी

भागीरथी तेरी कलकल का
सुमधुर संगीत।
तेरे उर्मियों के नृत्य पर
कोई नहीं आया आज
नमन करने और जपने हरिनाम।

मैं तो ढूँढ रही हूँ खुद को
तेरी अमृतमयी धाराओं में
बचपन का सुखद, निर्मल अट्टाहास
जो है तुम्हारे ही पास
लौटा दो न, मेरी प्यारी जाह्नवी।

पितृऋगृह और प्रकृति माँ की गोद में
तेरी अठखेलियाँ, पत्थरों पर नाचना और
गुनगुनाना निनादिनी पायल की झंकार सी
तेरी ये धारा करती निष्पाप बचपन का संचार।


ओ समाज के कर्णधार
क्या किया तूने गंगा मैया का हाल।
तुमसे है एक सवाल
क्यों किया इस सुधारस का गंदगी डालकर बुरा हाल
प्रगति का मार्ग ढूँढते
कैसी विवशता तूने है पाली
गंगा के ये कूल, कभी देते थे
आत्मिक, मानसिक और दैवी सुख का अहसास
लेकिन आज वो ही किनारे
दूषित होकर लगते बेगाने से।

२४ सितंबर २००६

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