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अनुभूति में मीना चोपड़ा की कविताएँ-

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मुट्ठी भर
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कविताओं में-
अवशेष
ओस की एक बूँद
गीत गाती
विस्मृत
स्तब्ध
सनन-सनन स्मृतियाँ

 

स्तब्ध

लय और प्रलय के बीच की
दूरियों को नापता
साज़िश में वक्त की लिपटा
जल से सघन बादलों के भरा-भरा
चमकती बिजलियों में उलझकर
काँपता रहा एक रिश्ता।

बादलों से टपकता
धुन्ध में लटकता
बचता – बचता
आ गिरा छिटक के
ज़मीं की गोद में कहीं से
एक रिश्ता यूँ ही
भटकता– भटकता

मौन हो गई है ज़मीं मेरी
सूँघ के साँप रह गई ह
जल-जल के धुआँ हो चुकी है

गति को अपनी ढूँढती है।

२५ अगस्त २००८   

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