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अनुभूति में मीना चोपड़ा की कविताएँ-

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कविताओं में-
अवशेष
ओस की एक बूँद
गीत गाती
विस्मृत
स्तब्ध
सनन-सनन स्मृतियाँ

 

अवशेष

वक्त खंडित था, युगों में
टूटती रस्सियों में बंध चुका था,
अँधेरे इन रस्सियों को निगल रहे थे।
तब !
जीवन तरंग में अविरत मैं
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी।
तुम्हीं में अस्त और उदित मैं
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी।
कुछ खाँचे बच गए थे
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें।
उन्हीं में हमारी कहानी भी
अपना किनारा ढूँढती थी।
एक अंत!
जिसका आरम्भ दृष्टि और दृश्य से ओझल
भविष्य और भूत की धुंध में लिपटा
मद्धम सा दिखाई देता था।
अविरल!
शायद एक स्वप्न लोक!
और तब आँख खुल गई
हम अपनी तक़दीरों में जग गए।
टुकड़े - टुकड़े ज़मीं पर बिखर गए।

२५ अगस्त २००८   

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