अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मीना चोपड़ा की कविताएँ-

नई रचनाओं में-
अमावस को
इश्क
एक अंतिम रचना
कुछ निशान वक्त के
ख़यालों में
मुट्ठी भर
सार्थकता

कविताओं में-
अवशेष
ओस की एक बूँद
गीत गाती
विस्मृत
स्तब्ध
सनन-सनन स्मृतियाँ

  इश्क

कफन में लिपटा बादलों के
छुपता सूरज
अँधेरी क़ब्र में सो चुका था
न जाने कब से
अपने आप से रूठा सूरज

एक आग के दरिया में
बहते किनारे उफ़क के
न जाने जलते रहे किसके लिए
दिन के ढल जाने तक

कौन था यह?
न जाने कबसे
खड़ा था जो सामने बाहें पसारे
पौ के फटने और भोर के हो जाने तक!
कब्र के फटने और कफ़न के उड़ जाने तक!

ओस की बूँद में बैठा छिपकर साँसे लेता
इश्क का कोई टूटा हुआ
टुकड़ा है शायद
किसी बिसरे हुए गीत का
कोई भटका हुआ
मुखड़ा है शायद!

२५ जनवरी २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter