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अनुभूति में इंदुकांत शुक्ल की रचनाएँ—

मुक्तछंद में—
अनुत्तरितः क्यों होती है रात

उस जगती हित

गीतों में-
जीवनरूपी ज़हर पिया है
दिशा कौन वह

संकलन में—
दिये जलाओ–
प्रदीपमाल
          ललित वसुंधरा
ममतामयी– स्वरगंगा

 

 

अनुत्तरितः क्यों होती है रात

सूरज बहुत काम करता है, थक जाता है
अपनी मां के पास रात में सोने जाता।

तारों से आकाश सजा कर चाँद रात भर
दिन में मित्रों के संग कहीं खेलने जाता
तुमने मुझे बताया निश्चयपूर्ण प्रेम से
सच तो यह है यह उत्तर मैं सोच न पाता।

उड़ कर बादल में जाऊँगा, वहीं रहूँगा
एक बार तुमने मुझको था यह बतलाया।
मैं चौंका, यह ठीक नहीं–तुमको समझाया
तुमने मेरी बात सुनी, कृतकृत्य रहूँगा

किंतु तुम्हारा एक प्रश्न अब भी अनुत्तरित
क्यों होती है रात? रोज़ सोचता रहूँगा
दे ना सका उत्तर या तुमसे सहसा छूटा
इस चिंता में निशि–दिन मैं अनवरत दहूँगा

९ फरवरी २००५

 

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