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अनुभूति में अनिता कपूर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अनचाहे एहसास का दर्द
खिड़की
साठ साल की उम्र वालों
हाशिये पर

हाइकु में-
पंद्रह हाइकु

क्षणिकाओं में-
सात क्षणिकाएँ

 

अनचाहे एहसास का दर्द

कितने
मर्मांतक होते हैं वे क्षण
जब हमें नहीं मिलते
अपने ही प्रश्नों के उत्तर
जब हमारी ही बनाई राह में से कोई
निकाल लेता है पगडंडी
और मंज़िलें हमें
दे जाती हैं धोखा
हतप्रभ चेतना
कितना कुछ छोड़ देती है
अनकहा
कितने अवश होते हैं
वे क्षण, जब हम
बे-जरूरत बहुत कुछ बोल जाते हैं
या बोलने के क्रम में
तुतलाते हैं
हमारे शब्द खड़े-खड़े
हकलाते हैं
कितने टूटे और बेदर्द होते हैं
वे क्षण
जब हम दर्द की तेज़ धार पर चलते हैं
घावों को लिखते हैं
और उसे सनक करार दिया जाता है
दर्द तक को नकार दिया जाता है
फिर शुरू होता है
टूटते चले जाने का अनवरत सिलसिला
फिर उठाए जाते हैं प्रश्न
फिर बनते हैं घाव
फिर-फिर उन्हें सीते हुए
बे-आवाज़ ढूँढते हैं
गुम हुई राहें
फिर...फिर...

१ जून २०१९

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