अनुभूति में
विनोद कुमार
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
आत्मकथ्य
कैसी आग
पूर्णिमा की रात
पृथ्वी–मंगल–युति (२००३) के प्रति
हाँफता हुआ शहर
हैवानियत के संदर्भ में
क्षणिकाओं में-
विनिमय
काला बाज़ार
उषःपान
हास्य–व्यंग्य में-
नकली
चोर
अपने पराए
संकलन में-
नया साल–अभिनंदन
अभिनंदन २००४
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कैसी आग
मशीनगनों, राइफलों व बम–बारूदों से
निरंतर छलनी–छलनी कर
बेगुनाह जिंदगियों को
उतार दिया जाता है मौत के घाट।
हर लाश पर
‘राजद्रोह की कीमत मौत’ की
चमकती मुहरें दी जाती है दाग।
गिद्ध–कौओं–सियारों
मरघट के कुत्तों में भी
नहीं हिम्मत कि
इर्द–गिर्द मँडरा जाये।
हर लाश एक भूगोल है
हर लाश है कहानी हैवानियत की
काँपती हुई हवा–दिशाएँ
दे रही है चेतावनी –
कि डरो ॐ संभलो
हर तानाशाह एक महान युगपुरूष होता है।
२४ दिसंबर २००३ |