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तीन व्यंग्य
नकली
नकली
सब नकली।
असली
बस हम असली।
चोर
एक चोर
चर्चा के बीच
टांग अड़ा कर बोला :
‘साला, जमाना ही सारा
चोर है’
अपने–पराये
क्या जानूँ ?
क्या मानूँ ?
क्या पहचानूँ ?
क्या ना जानूँ, ना मानूँ, ना पहचानूँ ?
ओह तुम सब सबसे नीचे
सब थे अपने
पर अब हो पराये।
२४ दिसंबर २००३ |