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अनुभूति में डा. वंदना मिश्रा की रचनाएँ—

छंदमुक्त में--
क्रूर हास्य
दो चित्र
वो गीत
मनराखन बुआ
माँ चली गयी

 

वो गीत

वो गाती थी 
"मेरी भीगी -भीगी सी पलकों में रह गए.."
गीत को बिना पलकें भिगाए
पर गाने के बाद 
उसकी आँखों में अजीब सूनापन 
तैरने लगता था
लड़कियाँ आपस में फुसफुसाती थी 
ये ज़रूर किसी से प्रेम करती थी
जैसे हत्या से कम न हो ये अपराध

उस तक भी पहुँचती होगी ये आवाज़े 
पर कहती नहीं थी कुछ भी
हाँ, उसके गीतों की डिमाण्ड बढ़ती जा रही थी 
सीनियर लड़कियाँ भी इसी गीत की फरमाइश करती 
वो और गाती, और उदास होती 
अटकलें तेज़ होती जातीं

न मैं कभी पूछ पाई 
और न गी उसे कभी  इतना विश्वास हुआ
कि बता सके खुद अपना दर्द
पता नहीं कहाँ होगी!
पर यह गीत 
उसकी उदास आँखों के साथ 
लोगों की ओछी सोच की याद भी 
दिला देता है

किसी को क्यों होना चाहिए
इतना उदास िकि गीत भी न बहला सकें!

१ दिसंबर २०२३

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