अनुभूति में
उर्मिला शुक्ल
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आहट
उपवन
छत्तीसगढ़ की औरत
बेटियाँ
माँ और तुलसी
सेतु है कविता
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उपवन
सच ही कहती थीं दादी
जिस आँगन में
खेलती नहीं बेटियाँ
जिस आँगन से
उठती नहीं डोली
वो अँगना भी रह जाता है
अन बियाहा और अकेला
सचमुच बेटी के साथ साथ
मां बाबा, घर द्वार,
ताल तलैया सब
सबके सब
बंध जाते है
इक बंधन में।
कहीं टूट न जाये
नेह डोर
इस डर से घबराकर वे
नित नई गॉंठ
लगाती हैं
१ फरवरी २०१८
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