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अनुभूति में उर्मिला शुक्ल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आहट
उपवन
छत्तीसगढ़ की औरत
बेटियाँ
माँ और तुलसी
सेतु है कविता
 

 

छत्तीसगढ़ की औरत

छतीसगढ़ की औरत
बोती है धान
निदाई कटाई और
मिसाई करके भर देती
कोठी में धान

वह जाती है बाज़ार
करती है सौदा
खरीदती है
साग भाजी या मौसमी फल
केरा संतरा या सीतफल
सिरपर धर कर टुकनी
लगती है फेरा
मुहल्ले और गलियों का
भर लेती है पेट
अपनों का

वह उतरती है सल्फी और
छिंद का रस
ले जाती है हाट
सल्फी का मटका लेकर
जब चलती है
सड़क पर
रैम्प पर चलती माडल को भी
कर देती है मात

छत्तीसगढ़ की औरत
लगती नहीं है नारे
करती नहीं है विमर्श
वो तो जीती है
जिन्दगी में
न जाने
कितने कितने विमर्श
जिन्दगी को सलीब नहीं
रईचुली समझ कर
झूलती है वो
जिजीविषा की पर्याय है
छत्तीसगढ़ की औरत

१ फरवरी २०१८

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