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सुशील जैन की
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वृक्ष-संस्कृति
१.
पेड़ों के बीच जाना
अपनों के बीच जाना है
कुछ उनकी सुनना
कुछ अपनी सुनाना है।
२.
पेड़ का हाथ
मैंने जब-जब
गहा है
कुछ हरा सा
मेरी नसों में भी
बहा है।
३.
पेड़
जनमता है
जिस धरती की कोख से
उम्र भर
सहेजता है, पोसता है
उस माँ को।
१९ मई २०१४
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