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प्रश्न-क्षण

चूड़ियाँ कलाइयों की
मंदिर की घंटियों की लय
या कि फिर तसब़ीह
टूटती है, बिखरती है
जब भी कहीं
हल्के से
तिनके की नोक भर
दरक जाता हूँ
मै भी।

नीड़ गौरैया का
दर्पण विश्वास का, या
स्वप्न किसी धुँधलाती आँख का
टूटता है बिखरता है
जब भी कहीं
हल्के से
तिनके की नोक भर
दरक जाता हूँ
मैं भी।

जी करता है
यह हरी धरती
यह नीला आसमान
मुट्ठी में बाँध लूँ।
कल कहीं एसा न हो कि
भविष्य के गर्भ में पल रही
हमारी संतानें
फूलों की जगह
प्रश्न चिन्हों से ढक दें
हमारी समाधियों को

१४ फरवरी २०११

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