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कविता
कविता,
जानता हूँ मैं
तुम
नाराज़ हो मुझसे.
आजकल,
जब भी तुम आती हो
मैं
खोया रहता हूं
जाने कहाँ,
और तुम लौट जाती हो
उल्टे पाँव.
तुम्हारा इस तरह लौट जाना
बेहद उदास कर जाता है
मुझे.
बेटी के इम्तिहान से लेकर
अस्पताल में बीमार पड़े दोस्त तक
और,
बीमे के प्रीमियम से लेकर
ऑफिस के ऑडिट,
गैस के खाली सिलेंडर और
बाथरूम के टूटे नल तक
क्या-क्या घूमता रहता है
मेरे ज़ेहन में
तुम नहीं जानती.
मैं तुम्हें
अनदेखा भले ही कर दूँ
भूल नहीं सकता.
तुम से बतिया लेता हूँ
तो जैसे
अधकटे ठूँठ से
कोई नन्हीं कोपल झाँकती है.
मेरी अच्छी कविता!
मुझसे कुट्टी मत करना
आती रहना
कभी-कभी यूँ ही
क्यों कि
तुम हो
तो मैं हूँ
१९ मई २०१४
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