अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुशील जैन की
रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
कविता
पहाड़
प्रेमकथा
मनवृक्ष
वृक्ष संस्कृति

छंदमुक्त में-
अर्ध शतक
एक शहर की दास्तान
इस निर्मम समय में
उड़ान
कर्फ्यू
कहानियाँ
क्या कहूँगा में
चिड़िया
दो छोटी कविताएँ
पेड़
प्रश्न-क्षण

प्रशिक्षण
सेतुबंध

 

कविता

कविता,
जानता हूँ मैं
तुम
नाराज़ हो मुझसे.

आजकल,
जब भी तुम आती हो
मैं
खोया रहता हूं
जाने कहाँ,
और तुम लौट जाती हो
उल्टे पाँव.
तुम्हारा इस तरह लौट जाना
बेहद उदास कर जाता है
मुझे.

बेटी के इम्तिहान से लेकर
अस्पताल में बीमार पड़े दोस्त तक
और,
बीमे के प्रीमियम से लेकर
ऑफिस के ऑडिट,
गैस के खाली सिलेंडर और
बाथरूम के टूटे नल तक

क्या-क्या घूमता रहता है
मेरे ज़ेहन में
तुम नहीं जानती.

मैं तुम्हें
अनदेखा भले ही कर दूँ
भूल नहीं सकता.
तुम से बतिया लेता हूँ
तो जैसे
अधकटे ठूँठ से
कोई नन्हीं कोपल झाँकती है.

मेरी अच्छी कविता!
मुझसे कुट्टी मत करना
आती रहना
कभी-कभी यूँ ही
क्यों कि
तुम हो
तो मैं हूँ

१९ मई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter