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साठ की उम्र में

 

साठ की उम्र में

साठ की उम्र में लोग
उन रास्तों पर
बेहद आहिस्ता चलते हैं
जहाँ वे दोबारा नहीं लौटेंगे

आइनों में वे
अपने पिता जैसे दिखने लगते हैं
हालाँकि पिता की छवि के पीछे से
कभी-कभी उनके बचपन का चेहरा भी
झाँकने लगता है इस ओर
जिसे वे हसरत भरी निगाहों से
देख लेते हैं

उनके भीतर
कुछ-न-कुछ भरता रहता है
लगातार

जैसे ढलती शाम के वीराने में आती है
झींगुरों की गहरी आवाज़
झाड़ियों-जंगलों को भरती हुई

४ अगस्त २०१४

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