अनुभूति में
सुशांत सुप्रिय की
रचनाएँ -
नयी रचनाओं में-
इधर से ही
एक सजल संवेदना-सी
किसान का हल
लोगों समझो
विडंबना
छंदमुक्त में-
केवल रेत भर
दिल्ली से
विस्तार
सबसे अच्छा आदमी
साठ की उम्र में
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केवल रेत भर
वर्षों बाद
जब मैं वहाँ लौटूँगा
सब कुछ अचीन्हा-सा होगा
पहचान का सूरज
अस्त हो चुका होगा
मेरे अपने
बीत चुके होंगे
मेरे सपने
रीत चुके होंगे
अंजुलि में पड़ा जल
बह चुका होगा
प्राचीन हो चुका पल
ढह चुका होगा
बचपन अपनी केंचुली उतार कर
गुज़र गया होगा
यौवन अपनी छाया समेत
बिखर गया होगा
मृत आकाश तले
वह पूरा दृश्य
एक पीला पड़ चुका
पुराना श्वेत-श्याम चित्र होगा
दाग़-धब्बों से भरा हुआ
जैसे चींटियाँ खा जाती हैं कीड़े को
वैसे नष्ट हो चुका होगा
बीत चुके कल का हर पल
मैं ढूँढ़ने निकलूँगा
पुरानी आत्मीय स्मृतियाँ
बिना यह जाने कि
एक भरी-पूरी नदी वहाँ
अब केवल रेत भर बची होगी
४ अगस्त २०१४
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