अनुभूति में
सुशांत सुप्रिय की
रचनाएँ -
नयी रचनाओं में-
इधर से ही
एक सजल संवेदना-सी
किसान का हल
लोगों समझो
विडंबना
छंदमुक्त में-
केवल रेत भर
दिल्ली से
विस्तार
सबसे अच्छा आदमी
साठ की उम्र में
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किसान का हल
उसे देखकर
मेरा दिल पसीज जाता है
कई घंटे मिट्टी और कंकड़-पत्थर से
जूझने के बाद
इस समय वह हाँफता हुआ
ज़मीन पर
वैसे ही पस्त पड़ा हुआ है
जैसे
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद
शाम को
निढाल हो कर पसर जाते हैं
कामगार और मज़दूर
मैं उसे
प्यार से देखता हूँ
और अचानक वह निस्तेज लोहा
मुझे लगने लगता है
किसी खिले हुए सुंदर फूल-सा
मुलायम और मासूम
उसके भीतर से झाँकने लगती हैं
पकी हुई फ़सलों की बालियाँ
और उसके प्रति मेरा स्नेह
और भी बढ़ जाता है
मेहनत की धूल-मिट्टी से सनी हुई
उसकी धारदार देह
मुझे जीवन देती है
लेकिन उसकी पीड़ा
मुझे दो फाड़ कर देती है
उसे देखकर ही मैंने जाना
कभी-कभी ऐसा भी होता है
लोहा भी रोता है
३० मार्च २०१५
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