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अनुभूति में सुरेश यादव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
चार छोटी कविताएँ
चाहता हूँ जब
ज़मीन
ताजमहल
माटी का घड़ा
यह शहर किसका है
रिश्ते
रोमानी बोध
शहर नंगा हुआ
सत्य
 

 

शहर नंगा हुआ

हज़ारों
साधु, संत, फकीरों के
लाखों प्रवचन हुए हैं
अजान की गूँजी हैं
दूर तक आवाजें
और मंदिर की घंटियाँ भी
बजती रही हैं रोज़
अभी तक
मन लोगों का
जाने कितना 'गंगा' हुआ है
सभ्यता के आवरण
जितने थे शहर के पास
फटते गए
और सारा शहर
एकदम नंगा हुआ है।
शहर में फिर दंगा हुआ है।

१ अक्तूबर २००६

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