चार छोटी कविताएँ
१-देह की रोशनी
रात अगर बहुत लंबी हुई
अँधेरा बहुत गहरा हुआ
उम्मीदों पर हताशा का
अगर पहरा हुआ
अस्तित्व का अर्थ
तब कोई ज़रूर बता देगा
छोटा-सा एक जुगनू
अपनी देह को रोशनी बना देगा।
२-पूजा
धर्म के माथे पर
खून का तिलक
पूजा की यह
कैसी ललक?
३-चुभन से खेलता है
काँटों से घिरा फूल
जब-जब
हवा से खेलता है
बहाना भर होती है
हवा
हकीकत में फूल
कांटों को झेलता है
चुभन से खेलता है।
४-आग-पत्थर
सदियों से
ये पत्थर सो रहे हैं
अपनी छाती में
आग लेकर!
किसी भी चोट पर
हड़बड़ाकर
उठ खड़े होंगे
हाथों में आग लेकर!!
१ अक्तूबर २००६
|