अनुभूति में
सुकेश साहनी की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
अंततः
उस एक पल के लिए
एक औरत का कैनवस
किसी भी बच्चे की माँ के लिए
चिनगारियाँ
रचते हुए
लड़ता हुआ आदमी
विरासत
हाँ मैं उदास हूँ
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उस एक पल के
लिए बैठता
ज़रूर है
बंदूक पर कबूतर
चाहे एक पल के लिए
ढीली पड़ती
ज़रूर है
छुरे की मूठ पर पकड़
चाहे एक पल के लिए
ठिठकते
ज़रूर हैं
खुदकुशी पर आमादा कदम
चाहे एक पल के लिए
जवाबदेही
ज़रूर है
चाहे एक पल के लिए
धड़कता
ज़रूर है
घुन खाया उदास दिल
चाहे एक पल के लिए
जवाबदेही
हमारी भी है
दोस्तो!
उस–
एक पल के लिए
चाहें तो
उड़ा दें
तोपों से
या
चुरा–लें–नज़रें
या कि–
समेट लें
उस पल को
नवजात शिशु की तरह
१६ फरवरी २००९ |