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अनुभूति में सुकेश साहनी की
रचनाएँ -

छंद मुक्त में-
अंततः
उस एक पल के लिए
एक औरत का कैनवस
किसी भी बच्चे की माँ के लिए
चिनगारियाँ
रचते हुए
लड़ता हुआ आदमी
विरासत
हाँ मैं उदास हूँ
 


 

  किसी भी बच्चे की माँ के लिए

माँ!
ये लोग मुझे तेरे उपनाम से जानते हैं
पर, तू
यहाँ भी
मेरे अंग-संग है-
मानते ही नहीं,
मैं तो रोज़ ही
खान में सैकड़ों फीट उतरते हुए
तुम्हारे वात्सल्य की उष्मा में
नहाता हूँ
पटरियों पर फिसलती ट्रालियाँ
भर–भरकर परोसती हो
हम सबके लिए,

ये लोग इसे
मेरी सनक मानते हैं
पर, मैं
गेहूँ की बालियों
चमकते चाँद
उगते सूरज
मिट्टी से उठती
सौंधी गंध की
बात करता हूँ,
ये लोग
तेरी कोख की बात करते हैं
पर, मैं

ज़िंदा होने का
तर्क़ देता हूँ
ज़ोर से कहता हूँ-
''हूँ''
और
''रहूँगा''
''माँ!''
तूने अपने दूध के एवज में
अपने बच्चों से
इसके सिवा कुछ चाहा भी तो नहीं।।
ये लोग
तुझे खत लिखने की बात करते हैं
पर, मैं
लिखता हूँ कविता–

किसी भी बच्चे की
माँ के लिए
फिर ये लोग
तुझे
बाँटने की बात
क्यों करते हैं?
माँ!!

१६ फरवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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