अनुभूति में
सुकेश साहनी की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
अंततः
उस एक पल के लिए
एक औरत का कैनवस
किसी भी बच्चे की माँ के लिए
चिनगारियाँ
रचते हुए
लड़ता हुआ आदमी
विरासत
हाँ मैं उदास हूँ
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हाँ मैं उदास
हूँ तुम्हारे बेटे के बेटे के लिए–
नन्हें बंटी के लिए
केबिल टी.वी. में
जब एक आदमी दूसरे की गर्दन दबाता है
दूसरा आदमी हाथ पैर फेंकता है
मछली-सा छटपटाता है
तब नन्हा बंटी तालियाँ पीटता है
खिलखिलाता है
हाँ, मैं चिन्तित हूँ
नई पौध की राख होती संवेदनाओं के लिए
अभी शेष हैं
राख के ढेर में कुछ चिंगारियाँ
इन्हें जिलाना होगा
नन्हे बंटी को बचाना होगा
मरे हुए लोगों से है उम्मीद बेमानी
इसलिए ज़िंदा लोगों को
सामने आना होगा
नन्हें बंटी को बचना होगा
१६ फरवरी २००९ |