अनुभूति में
सुकेश साहनी की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
अंततः
उस एक पल के लिए
एक औरत का कैनवस
किसी भी बच्चे की माँ के लिए
चिनगारियाँ
रचते हुए
लड़ता हुआ आदमी
विरासत
हाँ मैं उदास हूँ
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चिनगारियाँ
तुम जो पैसा बो रहे हो
पैसा काट रहे हो
तुम जो पैसा ओढ़ रहे हो
पैसा बिछा रहे हो
तुम जो पाँच सौ दे रहे हो
एक हज़ार पर अँगूठे लगवा रहे हो
तुम मेरे सीताराम नहीं हो सकते!
तुम जो करते थे जनवाद की बातें
गोर्की और प्रेमचन्द की बातें
घर से घर को जोड़ने की बातें
वही तुम!
अपने लिए महल बनवा रहे हो
और कोई बना न ले
तुमसे अच्छा महल
इस डर से
निर्माण पूरा होते ही
कारीगरों की अँगुलियों कटवाने की
योजना बना रहे हो
तुम मेरे यार नहीं हो सकते!
मेरे अजीज दोस्त सीताराम !
तुम्हें भी नहीं मालूम शायद–
तुम मर चुके हो,
ऊँची उड़ान में
अपने बेटों के साथ जल चुके हो
अब तुम जो हो
वह मेरा लंगोटिया यार कैसे हो सकता है?
१६ फरवरी २००९ |