अनुभूति में
सुकेश साहनी की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
अंततः
उस एक पल के लिए
एक औरत का कैनवस
किसी भी बच्चे की माँ के लिए
चिनगारियाँ
रचते हुए
लड़ता हुआ आदमी
विरासत
हाँ मैं उदास हूँ
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लड़ता हुआ
आदमी वह लड़ा है, उनके लिए
जिन्हें पैदा होते ही मार दिया गया
वह लड़ा है, उनके लिए
जिन्होंने लड़ना सीखा ही नहीं
वह लड़ रहा है, उनके लिए,
जो चाहकर भी न लड़ सके
ओ तमाशबीनो!
वह लड़ रहा है
तुम्हारे लिए भी,
लड़ता हुआ आदमी
लड़ता है हर किस्म की बीमारियों से
उसे तुम्हारी दवाओं की ज़रूरत नहीं होती
लड़ता हुआ आदमी
रचता है ऋचाएँ
उसे तुम्हारे 'जाप' की ज़रूरत नहीं होती
लड़ते हुए आदमी से
निकलती हैं नदियाँ
उसे गंगाजल की ज़रूरत नहीं होती
लड़ता हुआ आदमी
सिरजता है असंख्य सूरज
उसे मिट्टी के दीये की ज़रूरत नहीं होती
लड़ता हुआ आदमी
लड़ सकता है बिना जिस्म के भी
उसे नपुसंक फौज की ज़रूरत नहीं होती
१६ फरवरी २००९ |