यही है ज़िंदगी प्यारे
कभी हँसना अकेले में
कभी रोना अकेले में
खुद ही से भीड़ में मिलना
कभी खोना अकेले में
कभी मुस्कान है लब पर
कभी आँखों में पानी है
यही है ज़िंदगी प्यारे
यही तो ज़िंदगानी है।
कभी आँचल की छाँव का
कभी ममता की गाँव का
सहारे से अंगुलियों के
वो चलना नन्हें पाँव का
कभी कंधा पिताजी का
मेले की कहानी है।
कभी नींद को अपने किसी के नाम कर देना
किसी को देखकर छत पर सुबह को शाम कर देना
किसी के जुल्फ़ पर लिखना ग़ज़ल
खुद को खैय्याम कर देना
कभी है ज़िंदगी अपनी
कभी धड़कन बेगानी है।
कभी चलकर के गिरना है
कभी गिरकर सँभलना है
कभी लहरों में है किश्ती
कभी पार उतरना है
है सब खेल लहरों का
मौजों की रवानी है।
कहीं पर जीत का है जश्न
कहीं है हार का मातम
कहीं है मंज़िल कोसों दूर
कहीं बेचैनी का आलम
यहीं पाना है सब दौलत
यहीं जाँ भी लुटानी है।
कभी अपना है जग सारा
कभी तन्हाई है प्यारा
कभी है तीरगी हरसूँ
कभी फैला है उजियारा
कभी है रात अमावस की
कभी ये पूर्णमासी है।
कभी हमसे है ये दुनिया
कभी दुनिया से हम होंगे
कभी हासिल है सब खुशियाँ
कभी खोने के गम होंगे
कभी दुख है पहाड़ों-सा
कभी सुख आसमानी है।
यही है ज़िंदगी प्यारे
यही तो ज़िंदगानी है।
9 मार्च 2007
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