भविष्य
सड़क के किनारे
पॉलिश का डब्बा टाँगे
वो नज़र आता है अक्सर
मैं उससे नज़रें नहीं मिला पाता
यह हमारी विकासात्मक तस्वीर है।
या फिर उसकी ग़रीबी है
जो हमें लज्जित कर रही है
हम स्वयं से भी
नज़रें नहीं मिला पा रहें हैं
यह हमारे देश की तक़दीर है।
जिस देश के भविष्य के हाथों में
भूख का कटोरा हो
उस देश के वर्तमान पर
टिप्पणी उचित नहीं
वहाँ का वर्तमान भी फ़कीर है।
इसमें कहीं न कहीं
दोष हमारा भी है
हम कर सकते हैं कोशिश
अपने भाग्य को सँवारने की
क्यों नहीं बदल सकती
बिगड़ी हुई जो हमारे हाथों की लकीर है।
9 मार्च 2007
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