अनुभूति में
सुबोध श्रीवास्तव की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये (दो छोटी कविताएँ)
भूकंप
सिलसिला |
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तटबंध
नदी के
दो तटबंधों से हम
उस पार
तुम,
इस पार मैं।
यों हम
कतई पराए नहीं हैं
क्योंकि-
जब-जब रोई है नदी
हम दोनों की ही
आँखें भीगीं,
नदीं
जब भी उफनाई
बाढ़ में-
मैं भी खो गया
तुम भी
लेकिन-
पता नहीं क्यों
अपना दर्द
खामोशी से
पीते रहे हम।
पास बहती हवा
फुसफुसाकर
कानों में कह जाती है
अक्सर
कि नदी किनारे
जिन्दगी
इसी तरह साँस लेती है। २ अगस्त २०१० |