अनुभूति में
सुबोध श्रीवास्तव की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये (दो छोटी कविताएँ)
भूकंप
सिलसिला |
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सिलसिला
आदमी
आजीवन सीखता है
सलीका
छुटपन में
बड़ी अँगुली थामकर
नन्हे कदमों से/ नापता है
आँगन का दायरा,
रटता है
परिभाषाएँ/घर/आँगन/सड़क की।
लड़कपन में-
समझता है
छुटपन की रटी
परिभाषाओं के अर्थ
फिर/जब 'आदमी' हो जाता है तो
रचता है
नई परिभाषाएँ-
घर/आँगन/सड़क
और
आदमी की। २ अगस्त २०१० |