अनुभूति में
सुबोध श्रीवास्तव की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये (दो छोटी कविताएँ)
भूकंप
सिलसिला |
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चीखना मना है
तुम,
अपनी कमजोर पीठ पर
पहाड़ सा बोझ ढोते रहो
मगर
उफ, बिलकुल न करना
मेरे दोस्त।
न ही सरक जाने पर
बोझ के-
मेरे सहारे का इंतजार करना
तुम,
दर्द से छटपटाना
मगर
भूलकर भी कराहना मत
न ही गढ्डों के बीच झांकती
अपनी आँखों को
नमकीन पानी से नहलाना
मैं भी,
नहीं सहला पाऊंगा
तुम्हारी पीठ
मुझे माफ करना।
और/ मेरे दोस्त
भूख लगने पर
रोटी के लिए
चिल्लाना भी मत,
शोर के बीच
तुम्हारी-
मरियल आवाज
दम तोड़ देगी
तब, आक्रोश में
अपने हाथ
हवा में मत लहराना
क्योंकि
तुम्हें झुँझलाता देख
शायद मैं ही (?)
डपट दूँ तुम्हें
मगर तब भी
तुम चीखना मत
क्योंकि-
यह शहर
'अमन पसंद' लोगों का है
जिन्हें
शोर से सख्त नफरत है। २ अगस्त २०१० |