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समय राग
प्रेम में पगी हुई यह जीभ
चखना चाहती है रुके हुए समय का स्वाद
आज का यह क्षण
मन महसूस करना चहता है कई शताब्दियों बाद
जी करता है बीज की तरह धंस जाए यह क्षण
भुरभुरी मिट्टी की तह में
और कभी, किसी कालखंड में उगे जब
तो बन जाए एक वृक्ष छतनार
जिसकी छाँह में जुड़ाए
आज का यह संचित प्यार !
रुको मत समय
तुम बहो हवा की तरह
जैसे बह रही है भोर की मद्धिम बयार
और उड़ा ले जाओ इस क्षण की सुगंध का संसार.
रुके हुए समय से
आखिर कब तक चलेगा एकालाप
कब तक अपनी ही धुरी पर थमी रहेगी यह पृथ्वी
आखिर कब तक चलता रहेगा वसंत का मौसम चुपचाप
कब तक आंखें देखती रहेंगी
गुलाब, गुलमुहर और अमलतास
जबकि और भी बहुत कुछ है
अपने इर्दगिर्द - अपने आसपास
कुछ सूखा
कुछ मुरझाया
कुछ टूटा
कुछ उदास !
रुको मत समय
तुम चलो अपनी चाल
अपने पीछे छोड़ते जाओ
कुछ धुंधलाये , कुछ चमकीले निशान
जिन्हें देखते - परखते - पहचानते
उठते - गिरते चलें मेरे एक जोड़ी पाँव
और क्षितिज पर उभरता दिखाई दे
एक बेहतर दुनिया के सपनों का गाँव .
रुको मत समय
तुम बहो पानी की तरह
जैसे बह रहे है नदी की धार
रुको मत समय
तुम बहो हवा की तरह
जैसे बह रही है भोर की मद्धिम बयार !
२५ अप्रैल २०११
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