अनुभूति में
श्याम अंकुर की
रचनाएँ -
गीतों में-
कौन दे गया
खेत जिगर का
चलती देखी
झेल रहा हूँ
रिश्तों के बीच
लोग यहाँ के
विश्वासों की चिड़िया
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लोग यहाँ के
लोग यहाँ के -
जी रहे,
घुट-घुट अंकुर रोज।
जीवन आज तनावों में है
पीड़ा गहरी घावों में है
स्वारथ इतना हावी अब तो
विष ही केवल भावों में है
खंजर लेकर -
हाथ में,
करे प्रीति की खोज।
दौलत है उल्लास नहीं है
अपनों पर विश्वास नहीं है
जाग रहे हैं लोग यहाँ पर
जगने का अहसास नहीं है
रिश्तों की -
अब लाश पर,
करते मानव भोज।
धरती माँ से प्यार नहीं है
रिश्तों में मनुहार नहीं है
सेठ भले हैं मानव लेकिन
भावों का संचार नहीं है
बेदिल हो के -
ढो रहा,
मानव तन का बोझ।
१ सितंबर २००८
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