खेत जिगर का
खेत जिगर का -
आजकल,
कितना है सुनसान?
सपनों की सब
फ़सलें सूखी
लेकिन मन की इच्छा भूखी
आज लुटेरे -
लूट कर,
होते क्यूँ हैरान?
अब तक भी मैं
जान न पाया
कौन सगा है कौन पराया
कौन छीनता -
होठ की,
मुझसे नित मुस्कान?
कौन सुनेगा
कड़वी बातें
अपना करता हमसे घातें
कौन स्वार्थी -
है नहीं,
’अंकुर‘ अब इनसान?
१ सितंबर २००८
|