अनुभूति में
श्याम अंकुर की
रचनाएँ -
गीतों में-
कौन दे गया
खेत जिगर का
चलती देखी
झेल रहा हूँ
रिश्तों के बीच
लोग यहाँ के
विश्वासों की चिड़िया
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झेल रहा हूँ
झेल रहा हूँ -
आज भी,
मैं अचकन की मार।
पूँजीवादी मूलें गहरी
गहराई में नित-नित उतरी
लगातार बढ़ती जाती है
रोज-रोज ही शोषण गठरी
महँगाई की -
बाढ़ का,
आया नहीं उतार।
बलिदानों को छोड़ा जाता
भावों को बस मोड़ा जाता
जिन हाथों ने हिस्सा माँगा
उनको काटा, तोड़ा जाता
दिल्ली करती -
आ रही,
द्वैत-भाव व्यवहार।
माँ को छोड़ा भाग गये कुछ
लगा देश में आग गये कुछ
कुछ हैं जिनको माटी प्यारी
संस्कारित थे जाग गये कुछ
'अंकुर' -
अपने घाव का,
खुद ही कर उपचार।
१ सितंबर २००८
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