अनुभूति में
श्वेता गोस्वामी की
रचनाएँ -
अंजुमन में-
अपने वादे को
कौन कहता है
तू नहीं है तेरी तलाश तो है
फ़ैसला
छंदमुक्त में-
कविता
जीवन
मेरी जां हिन्दुस्तान
वक्त
विचारवान लोग
संभावना
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कौन कहता है
कौन कहता है वो अकेली है
आस जीने की जब सहेली है
भाग्य बिगड़ा है वक्त के हाथों
मुफ़्त बदनाम ये हथेली है
उम्र गुज़री गु़जर गईं सदियाँ
जिंद़गी आज तक पहेली है
चाँद माँगा गरीब बच्चे ने
चाँदनी फिर ये आज मैली है
मन की पीड़ा यों रोज़ सजती है
जैसे दुल्हन कोई नवेली है
ज़िंदगी की चुभन है काँटों सी
न ये चंपा है न चमेली है
मैंने देखा है खंडहर में 'श्वेता'
साँस लेती सी इक हवेली है
१ फरवरी २००६
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