अनुभूति में
डॉ. शरदिन्दु मुकर्जी
की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
क्रांति
नयी बिसात
बारिश की बूँदें
सन्नाटा
सावधान
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सावधान
बहते हुए समय के साथ
कदम मिलाकर चल सको
तो अच्छा है,
उसे रोकने की कोशिश मत करो –
तुम्हें धराशायी करके
वह निर्लिप्त, आगे ही बढता जायेगा।
उस धारा में उठती लहरों को
‘गर चूम सको
तो अच्छा है,
उन्हें बाँधने की कोशिश मत करो –
निर्दयी वे, तुम्हें अकेला छोड़
भँवरों में समा जायेंगी।
और, उन तपस्वी वृक्षों तक
यदि पहुँच सको
तो अच्छा है,
उनसे ऊँचा बनने की कोशिश मत करो –
माटी में ही जीवन है, यह समझाने
माटी में वे तुमको उतार लायेंगे।
हाँ, यदि तुममें
आवारा बादल बनने की क्षमता है
तो बात अलग है,
चाहे गरजो, या बरसो, मदमस्त फिरो
कोई तुम्हें रोक नहीं सकता –
पर सावधान !
उस नीले गहरे महाशून्य से घबराना
कहीं सृष्टि के मौन गर्भ में खींच न ले।
१ अगस्त २०२२
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